प्रसिद्ध ग्रंथ श्रीमद्भागवत ज्ञान का स्तोत्र है। समय-समय पर अनेक श्रद्धालुओं ने इस ग्रंथ से ज्ञान प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाया है । इस ग्रंथ में ऐसी अनेक दिव्य कथाओं का वर्णन है जिसे अपनी जीवन में अपनाकर मनुष्य देवताओं के स्तर को प्राप्त कर सकता है ।
श्रीमद्भागवत महापुराण |
इस ग्रंथ में प्राचीन भारत की महान नारियों की अनेक दिव्य कथाओं का वर्णन मिलता है जिन्होंने अपनी सेवा, त्याग और तपस्या के बल पर देवत्व को प्राप्त किया था ।
श्रीमद्भागवत महापुराण के नवम अध्याय के तीसरे स्कंध में राजा शर्याति की पुत्री देवी सुकन्या की दिव्य कथा का वर्णन है जिन्होंने पूर्ण निष्ठा से अपने पति ऋषि च्यवन की सेवा की ओर संसार के समक्ष एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया । संपूर्ण भारतवर्ष मे देवी सुकन्या का नाम बहुत आदर से लिया जाता है । इनकी गणना दस महान पतिव्रता स्त्रियों में की जाती है ।
देवी सुकन्या |
राजा शर्याति का वन गमन
प्राचीन आर्यव्रत में राजा शर्याति राज करते थे । वह मनु के पुत्र थे । वह बहुत न्यायप्रिय और दूरदर्शी शासक थे । उनकी प्रजा उनका अत्याधिक सम्मान करती थी । उनकी सुकन्या नाम की एक रूपवती पुत्री थी । वह सुकन्या से अत्याधिक स्नेह करते थे । राजकार्य की थकावट दूर करने और ऋषियों के दर्शन के उद्देश्य से उन्होंने वन विहार करने का निश्चय किया । अपनी सखियों के साथ राजकुमारी सुकन्या भी वन विहार को गई ।
वन का वातावरण अत्यंत मंत्रमुग्ध करने वाला था । प्राकृतिक वातावरण और विभिन्न प्रकार के पशु और पक्षियों की ध्वनियों से सब अत्यंत हर्षित हो रहे थे । वन में विहार करते हुए वह सब ऋषि च्यवन के आश्रम के समीप पहुचे । प्राकृतिक वातावरण का आनंद लेने के लिए सुकन्या अपनी सखियों के साथ वन मे भ्रमण करने लगी ।
प्राकृतिक वातावरण |
सुकन्या द्वारा ऋषि च्यवन के नेत्रों पर प्रहार
अज्ञानतावश सुकन्या द्वारा च्यवन ऋषि के नेत्रों पर प्रहार |
वंहा ऋषि च्यवन हजारों वर्षों से तपस्या में लीन थे और सुकन्या के प्रहार से उनकी तपस्या भंग हो गई थी । उसी क्षण राजा और उनके उसके सैनिकों के पेट में दर्द उठने लगा, उनकी बेचैनी बढ़ने लगी और उनका मूत्र आना रुक गया । जब राजा ने पूछा कि वन में किसी ने कोइ अपराध तो नहीं किया है तब उनकी पुत्री सुकन्या बोली की है पिताजी, अज्ञानतावश मैंने एक ऋषि के नेत्रों को बिंध दिया है ।
देवी सुकन्या और च्यवन ऋषि का विवाह
राजा शर्याति, सुकन्या के साथ च्यवन ऋषि के समीप पहुंचे । उन्होंने उनकी अनेक प्रकार से स्तुति की और उन्हें प्रसन्न किया । राजा ने अपनी पुत्री के अपराध के लिए उनसे क्षमा मांगी ।अपनी पुत्री की भूल का पश्चाताप करने के लिए राजा शर्याति ने सुकन्या का विवाह ऋषि च्यवन से कर दिया और उसे उनकी सेवा में छोड़कर अपनी राजधानी चले गए ।
ऋषि च्यवन |
सुकन्या का सेवाभाव
ऋषि च्यवन का रूप परिवर्तन
उन्होंने देवी सुकन्या को प्रसन्न करने का निश्चय किया । उन्होंने देवताओं के वैद्य अश्वनी कुमारों का आह्वान किया और उनसे अपने लिए एक दिव्य कुंड का निर्माण करवाया । उस कुंड में स्नान करने से ऋषि च्यवन की वृद्धावस्था दूर हो गई और वह अत्यंत रूपवान युवक के रूप में उस कुंड से बाहर निकले ।
अश्वनी कुमारों द्वारा दिव्य कुंड का निर्माण |
उन्हें देखकर सुकन्या अति प्रसन्न हुई । उन दोनों पति- पत्नी ने अश्वनी कुमारों का आभार व्यक्त किया और उनकी अनेक प्रकार से स्तुति की । उन्हें अनेक आशीर्वाद देकर अश्विनी कुमार स्वर्ग को चले गए ।
ऋषि च्यवन और देवी सुकन्या |
ऋषि च्यवन का अश्वनी कुमारों के लिए सोम यज्ञ करना
च्यवन ऋषि अश्विनी कुमारों के अत्यंत आभारी थे तथा उनके लिए कुछ करना चाहते थे । देवताओं का वैद्य होने के कारण सोमरस का पान अश्विनी कुमारों के लिए वर्जित था । ऋषि च्यवन ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह सोम यज्ञ का अनुष्ठान करेंगे और उन्हें सोमरस पीने का अधिकार दिलवाएंगे ।
अश्विनी कुमार |
राजा शर्याति की सहायता से च्यवन ऋषि ने सोम यज्ञ का अनुष्ठान किया । यज्ञ के पूर्ण होने पर उन्होंने अश्विनी कुमारों को सोमरस का पान कराया ।
उनके इस कार्य से कुपित होकर इंद्र ने शर्याति पर अपना वज्र चलाया परंतु इससे पहले कि वह वज्र शर्याति को कुछ हानि पहुंचा पाता, ऋषि च्यवन ने अपनी तपस्या की शक्ति से उसको वहीं रोक दिया । महर्षि च्यवन का यह कार्य देखकर सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की । देवताओं ने अश्विनी कुमारों को सोम का भाग देना स्वीकार किया ।
दिव्य ओषधि च्यवनप्राश
च्यवनप्राश |
महर्षि च्यवन तप स्थली, ढ़ोसी पर्वत |
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